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धान की उन्नत किस्में

चावल की कम समय और कम जल खपत में तैयार होने वाली किस्में

चावल की कम समय और कम जल खपत में तैयार होने वाली किस्में

चावल उत्पादन के मामले में भारत दूसरे स्थान पर आता है। धान की फसल के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती हैं इसके पौधों को जीवनकाल में औसतन 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 37 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती हैं। 

धान की खेती के लिए मटियार एवम दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती हैं। प्रदेश में धान की खेती असिंचित व् सिंचित दशाओं में सीधी बुवाई व रोपाई द्वारा की जाती हैं।

बतादें, कि निरंतर घटते भू-जल स्त्रोत की वजह से आज पानी का संकट होता जा रहा है। गर्मियों के दिनों में तो पेयजल संकट और ज्यादा गहरा हो जाता है। धान की खेती करने वाले कृषकों के समक्ष सिंचाई की चुनौतियां आती हैं। 

धान की खेती में सर्वाधिक पानी की जरूरत पड़ती है। एक अनुमान के मुताबिक, एक किलोग्राम धान उत्पन्न करने में लगभग 2500 से 3000 लीटर जल की आवश्यकता होती है। 

वर्तमान में हमें कम समय और कम पानी में तैयार होने वाले ऐसे चावल की किस्मों की आवश्यकता है, जिससे कि उनकी सिंचाई में पानी की खपत को कम करके पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सके और कम पानी में उत्तम पैदावार हांसिल की जा सके। 

इस बात को मद्देनजर रखते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीयू) के विशेषज्ञों ने चावल की कम व मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों की सिफारिश की है। इसमें चावल की पीआर 126 और पीआर 131 के अच्छे परिणाम मिले हैं। 

यह दोनों ही प्रजातियां कम पानी व समयावधि में तैयार होने वाली चावल की प्रजातियां हैं। आगे आपको बताएंगे कि कृषक इन किस्मों की बुवाई करके कम खर्चा में चावल की अच्छी-खासी उपज प्राप्त कर सकते हैं।

चावल की पीआर 126 किस्म

धान (चावल) की पीआर 126 किस्म को पंजाब कृषि विभाग के द्वारा विकसित किया गया है, जो कम समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की ऊंचाई 102 सेमी तक होती है। 

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यह किस्म 123 से 125 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। इस किस्म को कम जल की जरूरत होती है। इतना ही नहीं यह किस्म सात अलग-अलग बैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनकों के लिए प्रतिरोधी प्रजाति है। इसकी उपज की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ 31 क्विंटल की उपज हांसिल की जा सकती है।

चावल की पीआर 131 किस्म की क्या खूबी है ?

चावल की पीआर 131 किस्म की ऊंचाई 111 सेमी है। यह किस्म रोपाई के लगभग 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह वैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनक के समस्त 10 रोगों के लिए प्रतिरोधी प्रजाति है। इसके उत्पादन की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ लगभग 31 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है।

बतादें, कि इन किस्मों के अतिरिक्त भी धान की कम पानी में उगने वाली बाकी किस्में भी हैं, जिनकी खेती करके लघु या मध्यम अवधि में धान की शानदार उपज हांसिल की जा सकती है। इन किस्मों में पूसा सुगंध- 5, पूसा बासमती- 1509, पूसा बासमती-1121 व पूसा-1612 आदि शम्मिलित हैं।

चावल की धान पूसा सुगंध-5 किस्म 

धान की पूसा सुगंध-5 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पूसा दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह चावल की संकर प्रजाति है। इसके दाने पतले, सुगंधित और लगभग 7 से 8 मिमी लंबे होते हैं। 

इसके दाने की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है और उपज क्षमता भी काफी अच्छी होती है। यह किस्म 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

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इस किस्म से औसत पैदावार लगभग 5.5 से 6 टन प्रति हैक्टेयर अर्जित की जा सकती है। पूसा सुगंध की खेती भारत में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में विशेष तोर पर की जाती है।

चावल की पूसा बासमती- 1509 किस्म 

धान (चावल) की पूसा बासमती 1509 किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई कम समयावधि में तैयार होने वाली प्रजाति है। यह किस्म 120 दिन की समयावधि में तैयार हो जाती है।

इसकी औसत उपज की बात की जाए तो इस प्रजाति से लगभग 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। पूसा बासमती- 1509 किस्म के दाने लंबे व पतले हाते हैं, जिनकी लंबाई लगभग 8.19 मिमी होती है। 

यह चावल की अत्यंत सुगंधित किस्म है। इस किस्म में चार सिंचाई के जल की रक्षा में सहयोग मिल सकता है। यह किस्म धान की 1121 किस्म की तुलना में कम जल खपत में तैयार हो जाती है, जिससे पानी की 33% प्रतिशत बचत होती है। 

यह किस्म सिंचित अवस्था में धान-गेहूं फसल प्रणाली के लिए अनुकूल बताई गई है। इसके पौधे आधे बौने होते हैं और गिरते नहीं है। 

बतादें, कि इसके साथ ही फसल पकने पर दाने झड़ते नहीं है। यह किस्म पूर्ण झुलसा व भूरा धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी किस्म है। 

चावल की पूसा बासमती-1121 किस्म

धान की पूसा बासमती-1121 किस्म को सिंचित इलाकों में उगाया जा सकता है। यह किस्म 140 से 145 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। 

यह धान की अगेती प्रजाति है, इसका दाना लंबा व पतला और खाने में अत्यंत स्वाद से परिपूर्ण होता है। धान की इस प्रजाति से 40 से 45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन हांसिल किया जा सकता है।

चावल की पूसा-1612 किस्म

धान की पूसा-1612 किस्म को 2013 में विमोचित किया गया था। यह धान की सुगंध-5 किस्म का विकसित स्वरूप है। यह किस्म 120 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

यह सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए अत्यंत अनुकूल मानी जाती है। यह किस्म ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी किस्म मानी जाती है। बतादें, कि इस किस्म से तकरीबन 55 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

आज हम आपको धान की उन दस उन्नत प्रजातियों के विषय में बताने जा रहे हैं। जो कि उत्तर प्रदेश में सामान्यतः उगाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में धान की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। अब हम बात करेंगे इन 10 उन्नत किस्मों में से हर एक की अपनी प्रमुख विशेषताओं और फायदों के बारे में। बतादें, कि धान की इन उन्नत किस्मों को उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा उनकी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध साथ ही उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता की वजह से पसंद किया जाता है। किसी विशेष प्रजाति का चयन किसानों की प्रमुख जरूरतों और प्राथमिकताओं पर आश्रित रहता है। चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन सिंचाई सुविधाओं, उर्वरक उपयोग मृदा के प्रकार, मौसम, कीट प्रबंधन बाकी प्रबंधन कार्य जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर अलग हो सकता है। हालांकि, यहां धान की 10 उन्नत प्रजाति हैं। तो वहीं उनकी अनुमानित प्रति हेक्टेयर उत्पादन, जो समान्तयः उत्तर प्रदेश में बोई जाती हैं।

धान की दो उन्नत प्रजातियां

पंत धान 10: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और संकर किस्म है, जो कि उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु मशहूर है। यह एक लघु समयावधि की फसल भी है, जो कि तकरीबन 115-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

पीबी1: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक ऐसी किस्म है, जिसको उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जाता है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छे प्रतिरोध और उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह अति शीघ्र पकने वाली फसल भी है, जिसे पकने में लगभग 110-115 दिन लगते हैं।

एचयूआर 105: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में काफी मशहूर है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह एक छोटी अवधि की फसल भी है, जो तकरीबन 115-120 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

एनडीआर 97: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो आमतौर पर उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और अनाज की अच्छी गुणवत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह पकने वाली फसल भी है, जिसके पकने में तकरीबन 115-120 दिन लग जाते हैं।

पूसा बासमती 1121: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह बासमती चावल की एक बेहतरीन पैदावार देने वाली किस्म है, जो अपने लंबे एवं पतले दानों, सुखद सुगंध व उत्कृष्ट खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह कीटों एवं रोगों के लिए भी प्रतिरोधी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए अन्य किस्मों की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। इसकी बाजार में काफी मांग है। साथ ही, इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर बिरयानी बनाने के लिए किया जाता है। यह भी पढ़ें: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

पूसा सुगंध 5: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक सुगंधित चावल की किस्म है, जो उत्तर प्रदेश के अंदर व्यापक तौर से उत्पादित की जाती है। यह अपने छोटे और सुगंधित अनाज, उच्च उपज क्षमता के लिए मशहूर है। यह पकाने में भी आसान होती है।

पूसा 44: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बेहद मशहूर है। यह भी एक उच्च उपज वाली किस्म है, जो बहुत सारे कीटों व रोगों के लिए प्रतिरोधी सबित होती है, जो कि इसको कृषकों हेतु एक विश्वसनीय विकल्प बनाती है।

सरजू 52: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और गैर-बासमती किस्म है जो कि सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपने मध्यम आकार के अनाज एवं खाना पकाने की बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। साथ ही, यह कीटों और रोगों के लिए भी प्रतिरोधी है।

महसूरी: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक किस्म है, जो उत्तर प्रदेश समेत भारत के विभिन्न इलाकों में उगाई जाती है। यह अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता, उच्च उपज क्षमता के साथ-साथ अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह शीघ्र पकने वाला भी है एवं यह 120-125 दिनों में कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

पीआर 121: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। यह किस्म की उच्च उत्पादक क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोध क्षमता और उत्तम अनाज की गुणवत्ता हेतु काफी मशहूर मानी जाती है। यह एक छोटी समयावधि की फसल भी है, जो तकरीबन 110-115 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। यह धान की उन्नत किस्मों के कुछ उदाहरण हैं, जो सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उत्पादित की जाती हैं। बहुत सारी बाकी किस्में भी उत्पादित की जाती हैं, जिनमें से हर एक किस्म की अपनी अनोखी खासियत और फायदा है। यह ध्यान रखना काफी अहम है, कि इस लेख में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अनुमानित आंकड़ों पर आधारित है। क्योंकि किसानों द्वारा अपनाई गई खास स्थितियों एवं प्रबंधन प्रथाओं के तहत वास्तविक पैदावार भिन्न हो सकती है।